आज मदर्स डे यानि मातृ दिवस है यानि माँ को धन्यवाद देने का दिन, हमारे जीवन में माँ के योगदान का सम्मान करने का दिन, माँ की अहमियत को समझने का दिन. आज का माँ का दिन है.
लेकिन आज हम क्या करेंगे? आज हम में से ज़्यादातर लोग फोटो शेयर करेंगे, माँ के साथ सेल्फी लेंगे, कहानी, कविता, ग़ज़लें लिखेंगे, अपने सोशल मीडिया अकाउंट ऐसे संदेशों से पाट देंगे कि जैसे दुनिया में हमसे बड़ा सपूत कोई नहीं... एक कदम आगे बढ़कर आज हम केक भी काट लेंगे.. हाँ वैसे यह केक भी माँ का ही बनाया हुआ होगा...
इसके पीछे का सच्चा चेहरा जानते है आप? चलिए, आपको एक कहानी सुनती हूँ. एक परिवार में माता पिता और दो बच्चे थे. एक बार पिताजी चार सेब लेकर आए. पिता और बच्चों ने अपने अपने सेब खा लिए. माँ ने सबसे बाद में खाने की अपनी आदत के कारण अपना सेब रख दिया. अब सबसे छोटे लड़के को माँ के हिस्से के सेब को खाने की इच्छा हुई. माँ ने अपना सेब उसे यह कह कर दे दिया कि उसे तो सेब पसंद ही नहीं.
यकीनन आपने ये कहानी बहुत बार सुनी होगी, पढ़ी होगी कही न कही ज़रूर देखी भी होगी. जानते है क्यों? क्योंकि हमें माँ इसी रूप में पसंद है. त्याग की प्रतिमूर्ति के रूप में... पति और बच्चों की ख़ुशी और फरमाइशें पूरी करने के लिए अपनी ज़रूरतों का गला घोंटकर खुश रहने को मजबूर देवी के रूप में... हमें माँ त्याग की देवी के रूप में ही चाहिए होती है... हम माँ को इंसान नहीं मानना चाहते हैं...
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यह आज की बात नहीं है... सदियों पहले से माँ पर त्यागी और बलिदानी होने का इतना दबाव बनाया गया कि आज अगर कोई औरत माँ बनने के बाद अपने बारे में थोड़ा सा भी सोच ले तो उसे दानवी और राक्षसी मानने में कोई गुरेज़ नहीं करता. त्याग करके, भूखे रहकर, अपनी खुशियों की तिलांजलि देकर भी माँ खुश रहती है क्योंकि सदियों से माँ का इसी प्रकार ब्रेनवाश किया गया है. उनके ज़ेहन में पीढ़ी दर पीढ़ी यह बात गहरे बिठाई गई है माँ के माँ होने की सार्थकता तभी है जब वह त्याग करे, अपनी खुशियों अपने आराम का बलिदान करे. उनके मन में यह बात गहरे बैठी है कि अगर माँ होकर उन्होंने अपने लिए कुछ भी सोचा तो यह सबसे बड़ा पाप है. और बदले में हम क्या करते है, माँ पर कविता करके अपना पल्ला झाड़ लेते है. जबकि हकीकत तो ये है कि अगर आपको इतना होश हो चुका है कि आप यह समझ पा रहे है कि आपके भरपेट खाकर डकार लेने के बाद भी आपकी माँ भूखी सो गई है तो यह माँ के त्याग से ज्यादा आपकी हृदयहीनता है. अगर आपके जवान हो जाने के बाद भी रात में आपकी माँ आपके लिए अगले दिन के कपड़े, जूते, रुमाल, वॉलेट इत्यादि संभालकर रख रही है तो यह माँ के प्यार से ज्यादा आपका नाकारापन है.
लेकिन चिंता मत करिए. ऐसे हृदयहीन आप अकेले नहीं है. ऐसी पूरी पीढ़ी है जो महानता के बहाने माँ रुपी स्त्रियों का दोहन कर रही है. स्त्री को देवी बनाकर उससे इंसान होने के सारे अधिकार छीन लो. बहुत पुराना लेकिन बहुत कारगर फंडा है यह. इसी फंडे का कमाल है कि आज के ज़माने की स्त्रियाँ जो घरेलु मामलों की एक्सपर्ट होने के साथ साथ वित्तीय स्वतंत्रता तक नए मुकाम हासिल कर रही हैं, केवल इस बात पर भर्त्सना की शिकार होती है कि वे अपने बच्चों को डे केयर में छोड़ रही हैं.
इस बहस का कोई अंत नहीं है. लेकिन तब तक हम इतना कर सकते हैं कि माँ का देवीरुप में महिमामंडन ना करके माँ को वह ख़ुशी, वह आराम, वह प्यार, वह सम्मान, वह शौक पूरे करने का वक़्त दे जो हमने उनसे माँ की महानता का हवाला देकर छीन लिए थे. तभी हम सच्चे अर्थों में मदर्स डे मना पाएंगे.
(डिस्क्लेमर – उपरोक्त लेख में व्यक्त सभी विचार लेखक के निजी विचार और ये निओलस्टर मीडिया का प्रतिनिधित्व नहीं करते)