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सृजन का सप्तक स्वर

सृजन का सप्तक स्वर

सृजन के प्रथम स्पंदन से रचित हो रहा मेरा अभिनव संसार ,
सिंचित कर रक्त कणों से तुझको ,दिया दिव्य-अनुपम आकार !

अद्भुत है मेरी प्रथम अनुभूति ,तुझे दिया धडकनों का अभिसार ,
पुलकित हूँ 'माँ 'बनने की गरिमा से ,नारीत्व को मिला सात्विक-सत्कार !

हर पल हर दिन निखर रही मेरी ममता ,मेरे ही तन और मन में ,
सृष्टि का अंश बन जन्म लेगी ईश्वर की आद्या ,मेरे घर -आंगन में !

ममत्व की अनुभूति संग श्रृंगार कर वात्सल्य कणों से ,परिपूर्ण हो गई मैं,
मैं बनूँगी सृष्टि की प्रथम सृजन ,आत्म -गौरव से सम्पूर्ण हो गई मैं !

जग जाने है ये सत्य आदि हूँ मैं इस जगत की क्यों बनूँ मैं अंत ,
पुण्य-सलिला बन निरंतर ,बहाया हैं मैंने प्रेम -नीर अनंत !

मुझमें है अंश सृजन का ,ब्रम्हा से मिला मातृशक्ति को यह वरदान ,
जन्मों जन्मों तक ये जग नही चुका पायेगा ,सृष्टि का यह प्रतिदान !

आज हुआ तेरे रक्तिम अधरों से, शिशु-क्रंदन का मधुर कम्पन ,
खिल गई,मातृत्व के अनछुए स्पर्श से,सार्थक हो गया मेरा जन्म !

पावन मंत्रो से अभिमंत्रित ॐ सा पवित्र बिटिया ! तुम्हारा मीठा स्वर ,
देख ! झूम कर झुक गया व्योम भी, आज वसुधा के कदमो पर !

अक्षय निधि पाकर हो गई आल्हादित मैं,अब पावं पड़े न जमीं पर ,
अनंत ख़ुशी दे रहा'अम्मा'पुकारता मेरी नन्ही का मधुर सप्तक स्वर !!

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