रंग तिरंगे से लिया है
मैने श्रृंगार का
गवाह आज भी ये है
हमारे प्यार का।
ये सोचती हूँ
सोच कर खुश होती हूँ
कि मेरे फेफड़ों में जो आती है कभी तुम्हारे भी
प्राणों को उसने छुआ होगा
वही प्राण वायु मेरा श्रृंगार है।
कि कम्पन तुम्हारे ह्रदय के
हैं ध्वनियों में
जिन्हें मैं नीरवता में सुन लेती हूँ
वही स्पंदन मेरा श्रृंगार है
तुम्हारे जूते कपड़े जुराबें
जिनमे महक है तुम्हारी
हाँ बस यही कहना है
कि पहनती हूँ आज भी
जैसे कि तुम्हें पहना है
तुम्हारी बसाहट में रह कर
तुम्हे रोम-रोम में भरकर
जीती हूँ अपने लिए
ये नितांत निजिता ही
मेरा गहना है।
रंग बरसता है
केसरिया और हरा
मुझ सफेद पर
जब-जब लहराता है
तिरंगा आसमानी
ऊँचाइयाँ बेध कर।
दया, कृपा ,सम्मान
दहन कर दिए हैं
होलिका में
मुझे मेरा संघर्ष प्यारा है
मुझे ये सम्मान काफी लगता है
कि मेरा कृष्ण सिर्फ मेरा नहीं
पूरे बरसाने का प्यारा है
आज मैं इन्ही स्मृतियों का गुलाल
मलूंगी अपने मुख पर
अपने हाथों में उसके हाथ मान
होली के रंग मुबारक
नमन भारत
नमन तिरंगे
नमन शहादत।