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ढाई अक्षर

ढाई अक्षर

मेरा तुम्हारा ,एक तन्हा सा अंतर ,
मैं नीर भरी प्यासी बदरी ,
तुम रहे, सिक्त समंदर !
मेरा तुम्हारा ,अव्यक्त अंतर ,
मैं लिखती रही स्याह शब्द ,
तुम बने अभिव्यक्त अक्षर !
मेरा तुम्हारा ,बुनियादी अंतर ,
रंगती रही दीवारे रंग से,
तुम बने नींव के पत्थर !
मेरा तुम्हारा एक सुर्ख अंतर
तुम रहे मेरे मांग के सिन्दूर ,
पढ़ न सकी मन का अंतर ।
मेरा तुम्हारा अलौकिक अंतर ,
मैं शब्दों का अक्षर कोष ,
तुम प्रेम के ढाई अक्षर !!

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1 Comments

  •  
    Lemeharma

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