आत्म स्वीकार के बहाने
अंधेरे कमरे में
खुली आँखों से .. कई बार
पाता हूँ अपने को
बिना सुरताल के थिरकन
जैसे अजनबी के स्पर्श से सिहरन
इसी को माना है मैंने
अपना जीवन
शब्द और अर्थ के संबन्धों का इतिहास
कभी पुराना नहीं हुआ
बिना 'केबिन-मीटिंग' के
जिन्दा मान लिया गया मुझे
दूध शहद पानी भात रोटी
कुछ अनचाहे फाके
माँ का खून और स्नेह
बाप का थप्पड और कलेजा
और भी कुछ कुछ ...
मेरा आश्रय था
हर जगह सिर्फ़ मैं था
मैं था .. और मेरी दुनिया थी
मैं जानता था , वह जानती थी
कब .. किसने .. क्यों .. फेंका
याद नहीं
उस विस्मरण का कोई इतिहास नहीं
गति की काल निरपेक्षता
अनजान रही
अजनबी शहर के गोलचक्कर की तरह
मैं जीवित रहा
उस अकाल गति में
दौडता रहा उसके बाद भी
गंदला पानी पीकर .. ठण्ढी रोटी खाकर
जिसे शास्त्र ने कहा - तपस्या
बाद में समझ आया .. लाचारी थी
फिर भी बनी रही ज़िद
मैं भी जीतूँगा जैसे सभी जीतते हैं
जीवन का खेल
मनोविज्ञान में और भाषाविज्ञान में
क्योंकि दो ही दरवाज़े देखे थे मैंने
आँख खोली तो दुनिया बोली
मुँह खोला तो दुनिया बोली
दुनिया बोलती है
कभी निर्बन्ध तो कभी काव्य संगीत
धिन धिन ता ता धिन धिन ..
मेरे पडोसी थे [क्योंकि मैं था ]
बोले, आप अधूरा बोलते है
सिर्फ़ नया बोलते हैं, असिद्ध मुहावरे
जैसे, चाँदनी का टुकडा
मैंने सोचा बिना कभी ठहरे
मैं पूरा हूँ या अधूरा या ..
ज़मीन है थोडी सी
मकान बनवाऊँगा पूरा मकान
मैं एक पूरा काम करना चाहता हूँ, जैसे पूरा महाकाव्य
मैं गीत
मैं सुरताल, या नृत्य या अभिनय नहीं
मैं पूरा संगीत
जैसे मुझमें ब्रह्म
झूठ से भी निरर्थक, निरास्पद
ब्रह्म में माया .. माया में जगत .. जगत में मैं
और मुझमें ब्रह्म
यानी चक्के के चार निशान
बाप थे
माँ थी
मैं था और हूँ भी
लेकिन मेरा कारण भी था
कारण-विश्लेषण .. गोताखोरी
कोई कविता नहीं
कोई जीता है, कोई भोगता है
मैं पूरा या अधूरा - प्रश्न बना रहा
नहीं हो पाते सिद्ध मुहावरे
नहीं टिका पाता हूँ निशन दुनिया में
जैसे तुमने नहीं समझा
वैसे कोई नहीं समझता है
पूछता है अभिप्राय .. उद्दश्य .. अन्विति
कृष्ण की माँ यशोदा थी या देवकी
कर्ण की माँ राधा थी या कुन्ती
मैं अधूरा
एक पूरी कविता लिखना चाहता हूँ
पूरे जीवन की तरह
जन्म से लेकर मृत्यु तक
जीवित हूँ तो साँस है
साँस है तो जीवित हूँ .. अजीब उलझन है
मर जाऊँ या नहीं मरूँ
स्वर्ग जाऊँ या नरक जाऊँ
जीत जाऊँ या हार जाऊँ ..
सारे प्रश्न
पूछे बिना डूब मरे मुझे छोडकर
फिर भी मैं अधूरा ..
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