सिर्फ़ बयालीस साल, आठ माह और चार दिन की ज़िन्दगी को कोई शख़्स अगर इतना जी सकता था कि उसे दो जन्मों के बराबर सार्थक कर ले तो वह सिर्फ़ सआदत हसन मंटो ही हो सकते थे. बेमिसाल लेखक, मानव मन के अन्दर तक झांक लेने की क़ुव्वत, उसे बहुत तेज़ी से काग़ज़ पर उतार देने की प्रतिभा, समाज के एक तबके द्वारा हिकारत से देखा जाना और दूसरे द्वारा सर आंखों पर बैठाया जाना, दिमाग़ी तवाज़न बिगड़ा होना, नशे का आदी होना और ज़बरदस्त हाज़िरजवाबी को मिलाकर अगर एक जगह घोंट दिया जाये तो उसमें से सिर्फ़ एक ही चीज़ निकल सकती है और वह है ‘मंटो’, बेमिसाल मंटो, दुनिया में दूसरा मंटो पैदा ही नहीं हुआ.
मंटो ने अपनी छोटी सी ज़िन्दगी में हर तरह की रचनायें कीं जिनमें उनकी कहानियां, नाटक, अनुवाद, फ़िल्मी कहानियां, पत्र, आलेख और एक उपन्यास भी शामिल है. मुझे अक्सर हैरत होती है कि जितना साहित्यिक काम मंटो कर गये हैं, उसके लिये उनका एक-एक दिन चौबीस के बजाय कम से कम पचास घन्टों का होना चाहिये था. आख़िर वे खाते और सोते कब थे, यह समझ में नहीं आता. लगता है कि हर वक़्त उनकी कलम चलती ही रहती थी.
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अपने हमवक़्त लेखकों के सिरमौर मंटो एकलौते ऐसे लेखक थे जिन्हें प्यार और नफ़रत दोनों ही एक साथ मिलती थी और वह भी भरपूर. हालांकि अक्सर उन्हें कम पढ़ने वाले यही समझते हैं कि उन्होंने सिर्फ़ अंतरंग संबंधों पर ही लिखा है लेकिन ऐसा नहीं है. देश का विभाजन, सरकारी दमन, मानवीय संबंध, हास्य सभी कुछ उनकी रचनाओं में देखने को मिलता है. यह सच है कि रूपजीवा स्त्रियों के ऊपर मंटो ने काफ़ी लिखा लेकिन जब हम उनकी कहानियों को ग़ौर से पढ़ते हैं तो पता चलता है कि मंटो ने ‘रूपजीवाओं’ को ‘ सिर्फ़ एक औरत’ समझ कर ही लिखा है, जिसके अन्दर किसी भी अन्य औरत जैसी भावनायें छुपी होती हैं. सामाजिक और आर्थिक कारणों से वह भले ही वह इस व्यापार कर रही हो लेकिन अपने आप में वह एक सम्पूर्ण नारी है. काली सलवार, मेरा नाम राधा है, ख़ुशिया, मोज़ेल जैसी कई कहानियां इस बात की गवाही देती हैं. विभाजन के ऊपर ‘टोबा टेकसिंह’ के स्तर की तो कोई और कहानी लिखी ही नहीं गयी. ‘खोल दो’ जितनी बार पढ़ता हूं, मेरी आंखें और मन भीग जाता है. मानव मन के बारे में बात करें तो बू, मम्मद भाई, नंगी आवाज़ें, ठन्डा गोश्त, दो क़ौमें बेमिसाल अफ़साने हैं. सरकारी कानून के बारे में देखिये तो नया कानून, स्वराज और यौमे इस्तकलाल का क्या कहना !!!
ढेरों रचनायें, खुली किताब जैसी ज़िन्दगी, बेमिसाल क़िस्सागो जो कहता था कि मैं अफ़साने (कहानियां) इस लिये लिखता हूं कि एक ही दिन में लिख कर एक बोतल शराब के पैसे कमा लेता हूं. अश्लीलता के मुकदमों की पैरवी में जो सच्ची मासूमियत से मैजिस्ट्रेट से पूछ लेता था कि आख़िर मेरे ऊपर किस बात का मुकदमा चल रहा है ? मुकदमे में जिसके ऊपर जुरमाना करने वाला मैजिस्ट्रेट ही उससे शाम को साथ चाय पीने का इसरार करता था. कौन हो सकता था वह सिवाय मंटो के ? मुझे तो लगता है कि आसमान पर मंटो आज भी नायाब अफ़साने लिख रहे होंगे और फ़िरिश्तों को सुनाते होंगे. क्या पता दिन में वे फ़िरिश्ते ख़ुदा से मन्टो की शिकायत करते हों और रात में उन्हीं से नये नये क़िस्से सुनाने की गुज़ारिश करते हों. काश मंटो ने अपनी ज़िन्दगी में इतना नशा न किया होता कि उनका दिमाग़ी तवाज़न भी बिगड़ जाता और जिस्मानी सेहत भी तो आज सारी दुनिया में मंटो के परस्तार मौजूद होते. मैं जब तक ज़िन्दा रहूंगा, मंटो को बार-बार पढ़ता ही रहूंगा. उस बेहद ईमानदार लेखक को मैं आज उसके जन्म दिवस की तारीख़ पर सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं.