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थप्पड़...

थप्पड़...

थप्पड़ खाकर भी औरत
एक अच्छी औरत बनी रहने
के लिए चुप रह जाती है
एक अच्छी औरत का
अच्छी होने के लिए थप्पड़ खाना
ज़रूरी नही लेकिन थप्पड़ खाकर
चुप रह जाना बहुत ज़रूरी है....

एक अच्छी औरत के लिए
हमेशा चुप रह जाना ही कसौटी है
चाहे पढ़े लिखे पैसे कमाये घर सजाये
पर पीढ़ी दर पीढ़ी समाज ने उसे
यही सिखाया है एक थप्पड़
उसके त्याग और समर्पण से
बड़ा नही बार बार दोहराया है....
 

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इसीलिए एक अच्छी औरत
जल्दी ही भुला देती है
हवा के ढंग तितलियों के रंग
पहला प्रेम पत्र नदी बादलों के चित्र
माँ बाप की डाँट सास ससुर के तंज
परिवार की बातें पति की गालियाँ
और थप्पड़ भी ....

एक अच्छी औरत ही तो
सुनाई जाती है कथाओं में
दिखायी जाती है नाटिकाओं में
सराही जाती है सभाओं में
चुप रहकर जो पी जाये आँसू
सह जाये रोज़ रोज़ की प्रताड़ना
वो ही अच्छी कहलाती है .....

इसीलिए एक अच्छी औरत
भुला देती है हर एक थप्पड़
मिटा देती है अपना अस्तित्व
सुलझाने समेटने में कई व्यक्तित्व
उसका कोई सपना नही होता
कोई भी घर या विचार
उसका अपना नही होता....

एक अच्छी औरत कभी
प्रेम नही करती दिल की बात
नही कहती थप्पड़ खाकर भी सवाल
नही करती जानते हुए भी ख़ुद को
नही जानती है वक़्त के साथ
दौड़ती न थकती है पर अपनी
ज़िंदगी जी नही पाती है.....

एक औरत जो थप्पड़
खाकर भी चुप रह जाती है
मुझे क़तई नही भाती है क्योंकि
थप्पड़ खाकर भी वो औरत
कोई आवाज़ नही उठाती है
सिर्फ़ एक अच्छी औरत कहलाने
के लिए चुप रह जाती है.....!

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