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तीन कहानियाँ (भाग – 1)

तीन कहानियाँ (भाग – 1)

1. आइना..

“क्या हुआ चित्रा को...? बहुत दिनों से घर नही आयी, तुम्हारी पक्की सहेली..!”माँ ने चाय का कप मुझे पकड़ाते हुए पूछा।

“कुछ नही माँ , व्यस्त होगी किसी काम में..!”
“अरे ऐसा कौन सा काम आ गया .. पहले तो अक्सर ही शाम को स्कूल से तेरे साथ ही आ जाती थी फिर चाय पीकर ही अपने घर जाती थी..शादी तय हो गयी क्या उसकी..?”

“नही माँ, मुझे नही पता ..!”
“अरे क्या नही पता ...तुम लोगों की बात नही होती क्या... कोई लड़ाई हुई...और तुमने मुझे बताया भी नही..?”

“क्या बताती माँ...हमेशा मुझसे कहती रहती थी , तुम बस सब की हाँ में हाँ मिला देती हो , लोगों को आइना दिखाने से डरती हो तो....”

“तो क्या...,माँ ने मुझे घूरा..?”
तो मैंने एक दिन किसी बात पर आइना उसकी तरफ़ घुमा दिया, बस तभी से ...!

2. एक कहानी....

“हर वक़्त लिखना,लिखना और लिखना ...ये नहीं घर के काम में मेरा कुछ हाथ बँटा दे ।पता नहीं क्या क्या कथा कहानी लिखती रहती है “, माँ बड़बड़ाते हुए रसोई में चली गयीं।

ऐसा नहीं कि मैं कुछ काम नहीं करती सुबह सुबह स्कूल पहुँचना दिन भर पढ़ाना और आजकल स्कूल में सिर्फ़ पढ़ाना ही नहीं होता , कभी कोई कार्यक्रम तो कभी कोई प्रतियोगिता उसकी तैयारी कराना। इन सबसे फ़ुर्सत मिले तो साप्ताहिक मासिक अर्धवार्षिक वार्षिक ... परीक्षाओं की तैयारी कराओ।

दोपहर में घर आने के बाद तो कुछ करने का मन ही नहीं होता । शाम को चाय लेकर मैं कुछ लिखने बैठती हूँ तो माँ को लगता है कि लो बैठ गई लिखने क्यूँकि उनके लिए तो ये रात के खाने की तैयारी का समय होता है, जानती हूँ सुबह से अकेले सारे घर को सम्भालते अब वो भी थकने लगी हैं;पापा और भैया से तो उन्होंने न कभी हाथ बँटाने की कोई उम्मीद करी और न ही करेंगी।

“हाँ , बताओ क्या काम करना है..?”मैंने पीछे से जाकर उनके गले में हाथ डालते हुए कहा।

“उहँ, जाओ पहले अपनी कथा कहानी पूरी कर लो , नहीं तो कहोगी मेरी वजह से पूरी लिख नहीं पाई... समय से भेज नहीं पाई..!’,माँ ने गले से मेरा हाथ हटा फ्रिज से सब्ज़ियाँ निकलते हुए कहा।

“अच्छा माँ सच सच एक बात बताओ , क्या तुमने कभी कोई कहानी लिखने का नहीं सोचा ... आख़िर मुझमें यह शौक़ कहाँ से आया...?”

“मुझे तो लगता है तुम्हीं से आया है..पापा से तो ..कोई सवाल ही नहीं ..उन्हें लिखना कौन कहे कहानी पढ़ना भी पसंद नहीं..!’

“हाँ,ये तो तुमने सही कहा ...!” पहले जब मैं कोई अच्छी कहानी या उपन्यास इन्हें पढ़ने को कहती थी तो इनको सुनते ही बुखार चढ़ जाता , कहते ये सब तुम्हीं पढ़ो..”,माँ हँस दी।

“इसका मतलब तुम्हें पढ़ने का शौक़ था , लेकिन मैंने तो तुम्हें कभी पढ़ते नहीं देखा ...” मैंने आश्चर्य से अपनी याददाश्त पर ज़ोर देते हुए कहा।

“छोड़ो, वो सब बहुत पीछे छूट गया ।”
“नहीं माँ, तुमको लिखना चाहिए था.. ! पता नहीं क्यूँ मुझे हमेशा लगता था कि तुम बहुत अच्छा लिख सकती हो, चाहो तो अब लिखो ...!”

“ अच्छा ..!”
“हाँ माँ सच्ची..!”
“ कोई बात नहीं, तू जो इतना अच्छा लिखती है ...”, माँ ने हँसते हुए कहा ।

फिर सब्ज़ी काटते हुए बोलीं , ” ज़रूरी तो नहीं हर कहानी काग़ज़ पर ही लिखी जाये, बहुत सारी कहानियाँ औरत के दिल,दिमाग़ और शरीर पर भी लिखी होती हैं, जिन्हें जीवन भर वो बिना लिखे,बिना कहे सुनाती चलती है।”

कितनी बड़ी बात कह गयीं माँ..मैं निरुत्तर आश्चर्य से उनके चेहरे पर लिखे को पढ़ने की कोशिश कर रही थी...!

Teen Kahaniyan

3. गोद ली हुई लड़की...

“चुप हो जाओ तुम सब झूठ बोल रहे हो ..”,अचानक उसे लगा उसका सिर फट जाएगा अगर वो ज़ोर से चीख़ी। “नहींऽऽऽऽऽऽऽऽ......!”एक चीख़ मारकर वो उठ बैठी।

याद आया वो तो अपने बेड पर तकिया में मुँह छुपा कर रो रही थी, शायद रोते रोते सो गयी थी।सिर अभी भी दर्द से फटा जा रहा था।


आज उसने अपने माँ और पापा को आपस में कुछ ऐसा कहते सुना कि उसे अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हो रहा, कुछ देर के लिए तो उसे ऐसा लगा कि उसके दिमाग़ ने काम करना ही बंद कर दिया है.....!
कुछ सदमे जैसी हालत में वो रोते रोते अपने कमरे में आकर बेड पर गिर पड़ी थी।

“देखो जी अब शादी में ज़्यादा समय नहीं बचा, समझते क्यूँ नहीं ..? कब तक आप ये बात टालोगे, मुझे तो समझ नहीं आ रहा लड़के वालों से कैसे बताएँ कि हमने आस्था को गोद लिया है हमारी बेटी होते हुए भी वो हमारी बेटी नहीं है..”, माँ ने कहा था।

“कैसी बात कर रही हो तुम ...बताना क्या है और क्यों ? वो हमारी ही बेटी है ..”,पापा ने ग़ुस्से से काँपते हुए स्वर में कहा।

“मैं कब कह रही ,वो हमारी बेटी नहीं है ..बस एक दिन की थी जब लायी थी , कोई कमी नहीं रखी हमने प्यार दुलार पढ़ाई लिखाई पालने पोसने में कभी , इंजीनियर है अच्छी जॉब है आज अपने पैरों पर खड़ी है। लेकिन इन सब में हम ये भूल ही गए थे कि उसकी शादी भी करनी है..!”माँ ने दुखी स्वर में कहा।

“तो क्या करें , तुम क्या चाहती हो ..?”पापा के स्वर में हताशा थी ।

“अगर शादी के बाद ससुराल वालों को कहीं से पता चला और उन्होंने आस्था से कुछ पूछा तो वो बेचारी तो कुछ जानती भी नहीं... टूट जाएगी वो और हमसे तो नफ़रत ही हो जाएगी उसे ...।”

“और अगर हम उन्हें पहले से ही बता दें तो...?” पापा ने कुछ सोचते हुए कहा।

“तो पहले आस्था को बताना होगा , चार बातें और होंगी ... फिर आस्था पर इस सबका क्या असर होगा कह नही सकते वो तो कुछ भी नहीं जानती, ये सोचकर ही मेरा कलेजा फटता है कि सब उसे गोद ली हुई लड़की कहेंगे “, माँ ने रुआंसी आवाज़ में कहा।

बस तब से उसके कानों में माँ के यही शब्द गूँज रहे हैं ... “सब उसे गोद ली हुई लड़की कहेंगे...!”जो वो किसी भी तरह पचा नहीं पा रही ...!

”तो मैं कौन हूँ..? उसका मन हुआ चीख़ कर पूछे ,”मैं कौन हूँ...?” काश उसने ये सब न सुना होता या माँ पापा ने पहले ही कभी उसे बता दिया होता ..! “

“अरुण क्या सोचेगा उसके और माँ पापा के बारे में ... पिछले दो साल से दोनो एक दूसरे को पसंद करते हैं दोनो के घरवाले भी कई बार आपस में मिल चुकें हैं ....क्या वो मानेगा कि उसे कुछ नहीं पता था ..? “

सोचते सोचते उसका सिर फटने लगा , दिमाग़ काम नहीं कर रहा था और आँखों से आँसू रुक ही नहीं रहे थे।

“उन्ही से जाकर पूछती हूँ ... मेरे साथ ऐसा क्यूँ किया ?”
ग़ुस्से और क्षोभ से उठे हुए क़दम कमरे से बाहर आते ही ठहर गये ,“क्या करने जा रही है वो ...क्या माँ पापा को उनकी ही नज़रों में शर्मिंदा करना सही है ...उनका और कौन है मेरे सिवा ?”

“शायद मुझे खोने के डर से वो कभी मुझे बता नहीं पाए लेकिन मैं ये ग़लती नहीं करूँगी....अरुण को फ़ोन करके सब सच बता दूँगी, फिर जो होना हो वो हो....अब ये मेरी लड़ाई है...!”

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