आज यानि 26 अप्रैल 2020 की तिथि अक्षय तृतीया के त्यौहार के रूप में आई है. अक्षय तृतीया प्रायः वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है. अक्षय तृतीया को कभी नष्ट न होने वाली समृद्धि, आशा, आनंद और सफलता की प्राप्ति के दिवस के रूप में मनाया जाता है.
अक्षय तृतीया को जैन धर्म एवं हिन्दू धर्म को मानने वाले अपनी अपनी धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मनाते हैं.
जैन धर्म की मान्यता:
माना जाता है कि आज ही के दिन जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव जी ने अपने एक वर्ष का उपवास गन्ने का रस पीकर तोड़ा था. यही कारण है कि इस त्यौहार को जैन धर्म में वार्षी तप के तौर पर भी मनाया जाता है.
हिन्दू धर्म की मान्यता :
हिन्दू धर्म में अक्षय तृतीया की बहुत महत्ता है. इस दिन को सभी कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त माना जाता है. अक्षय तृतीया को विवाह के लिए भी बेहद शुभ मुहूर्त माना जाता है. इस दिन उपवास रखे जाते है तथा दान दक्षिणा भी की जाती है. अक्षय तृतीया के दिन सोने की खरीददारी भी की जाती है.
अक्षय तृतीया से हिन्दू धर्म की बहुत सारी पौराणिक कथाएँ जुड़ी है. माना जाता है कि पांडवों के वनवास के दौरान पांडवो के सामने अक्सर भोजन की समस्या उत्पन्न हो जाती थी. इसी दौरान ज्येष्ठ पांडव युधिष्ठिर ने भगवान सूर्य की तपस्या की. भगवान सूर्य ने प्रसन्न होकर युधिष्ठिर को एक पात्र दिया जो द्रौपदी के खाना खा लेने तक खाली नहीं होता था.
माना जाता है कि आज ही के दिन, ऋषि दुर्वासा अपने सभी गणों के साथ, पांडवों की कुटिया पर पधारे. तब तक द्रौपदी सभी परिवारजनों को भोजन करवाकर खुद भी भोजन करने के उपरांत वह पात्र धोकर रख चुकी थी. सभी पांडव द्रौपदी सहित बहुत चिंता में थे कि ब्राह्मण जनों को भोजन कैसे कराया जाए. तभी श्रीकृष्ण वहाँ पधारे. उन्होंने द्रौपदी को बचे हुए चावलों से खीर बनाने की सलाह देते हुए कहा कि खीर को सभी ब्राह्मणों को उसी पात्र से परोसा जाए. पांडवों ने इसपर शंका जताई कि उस पात्र में भोजन की आपूर्ति तभी तक होती है जब तक द्रौपदी भोजन न कर ले, और द्रौपदी भोजन कर चुकी थी. किन्तु द्रौपदी ने कहा कि उसे श्रीकृष्ण पर पूरा भरोसा है. अतः सभी पांडवों ने श्रीकृष्ण के कहे अनुसार ही किया और उसी पात्र से खीर परोसा जाने लगा. सभी ऋषि गण भरपेट खीर खाकर तृप्त हुए तथा उन्होंने द्रौपदी और पांडवों को आशीर्वाद भी दिया.
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श्रीकृष्ण के आशीर्वाद से वह पात्र आज ही के दिन “अक्षय पात्र” बना था. कहते है “अक्षय पात्र” पूरे ब्रह्मांड की क्षुधा शांत करके भी खाली नहीं होता.
एक दूसरी कथा के अनुसार आज ही के दिन ऋषि वेद व्यास ने महाभारत सुनानी शुरू की थी और श्री गणेश ने लिखना प्रारंभ किया था.
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पुरी में रथ यात्रा के लिए रथों का निर्माण भी आज से ही शुरू होता है.