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हमारी मान्यताएँ, हमारे रीति रिवाज, हमारे इष्टदेव, हमारे भगवान से जुड़ी ऐसी कई जनश्रुतियाँ और लोक कथाएँ होती हैं जिनका वर्णन शास्त्रों या पुराणों में तो नहीं होता लेकिन ये जनमानस में ऐसी बस जाती हैं कि इन्हें किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती. ऐसी ही एक लोक कथा है जो “महाकाल महादेव प्रभु” के नाम “आशुतोष भगवान” को सार्थक करती है.
भगवान शिव के कई नाम हैं. उनके भक्त कई रूपों में कई नामों से उनकी पूजा करते हैं. शिव शंकर, भोले बाबा, भोले भंडारी, नीलकंठ, शम्भु, अविनाश इत्यादि उनके कई नामों में से एक है. उनके नाम “आशुतोष” का मतलब होता है जल्दी संतुष्ट और प्रसन्न होने वाले. “आशु” मतलब “जल्दी” और “तोष” मतलब “संतुष्ट और प्रसन्न होने वाले.” महादेव प्रभु के इसी नाम “आशुतोष” से जुड़ी एक बड़ी ही रोचक लोककथा है.
एक बार एक व्यक्ति किसी यात्रा पर पैदल ही जा रहा था. चलते चलते काफी रात हो गई. अब उसे भूख लग आई और थकान भी होने लगी. तभी उसे एक विशाल पेड़ दिखा. वह उसी पेड़ के नीचे बैठ गया और भोजन करने लगा. भोजन करने के बाद उसे नींद आने लगी. पहले उसने सोचा कि क्यों न उसी पेड़ के नीचे अंगोछा बिछा कर लेट जाए. लेकिन अगले ही पल उसे जंगली जंतुओं और चोर-डाकू का भय सताने लगा. काफी विचार कर उसने यह उपाय निकाला कि क्यों न वह इस विशाल पेड़ की किसी शाखा पर सो जाए. इस तरह उसे न तो जंगली जंतुओं का भय रहेगा और न चोर-डाकुओं को.
बस फिर क्या था. वह व्यक्ति फटाफट पेड़ पर चढ़ गया. उसने पेड़ के तने से निकलती एक मोटी सी शाखा पर लेटकर अपने उसी अंगोछे से खुद को शाखा से बाँध लिया और सो गया.
सुबह-सुबह उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे कोई उसके माथे को सहला रहा है. उस व्यक्ति ने झट से आँखें खोली और उठकर बैठ गया. सामने देखकर उसकी आँखें आश्चर्य से फटी की फटी रह गई. वह कुछ बोल न सका.
उसके सामने साक्षात महाकाल महादेव प्रभु मंद मंद मुस्कुरा रहे थे. उसे इस प्रकार आश्चर्य चकित देखकर भगवान महादेव मुस्कुराते हुए बोले, “वत्स! हम तुम्हारी पूजा से अत्यंत प्रसन्न हुए. माँगो, क्या वर माँगते हो?”
भगवान महादेव की बात सुनकर उस व्यक्ति की आँखों से अश्रुधारा बह निकली. उसने हाथ जोड़कर काँपते होंठों से कहा, “प्रभु! मैं मूढमति तो आपकी पूजा करने के स्थान पर निद्रा में लीन था. भला, मैंने कब आपकी पूजा-अर्चना की? बिना पूजा के ही जो आप मुझपर प्रसन्न हुए वह अवश्य मेरे पूर्वजन्म के कर्मों का फल है.”
भगवान महादेव उसकी बात सुनकर मुस्कुराए और बोले, “वत्स! तुमने पूरी रात्रि हमारी पूजा की है. तनिक देखो तो तुम कौन से पेड़ पर लेटे हो?” भगवान की बात सुन उस व्यक्ति ने अपनी नज़रें घुमाई तो उसने देखा कि वह बेल के पेड़ की शाखा पर लेटा था. रात में उसने ध्यान नहीं दिया था लेकिन अब सुबह की रौशनी में उसे साफ साफ दिख रहा था कि वह बेल का पेड़ था जिसपर वह लेटा था.
उसे आश्चर्य से इस प्रकार अपने चारों ओर देखते हुए भगवान महादेव फिर बोले, “वत्स! अब ज़रा नीचे देखो.”
उस व्यक्ति ने नीचे देखा तो पाया कि नीचे एक छोटा सा शिवलिंग था जो बेलपत्रों से लगभग ढँक सा गया था. इतना सब देख लेने के बाद भी वह व्यक्ति कुछ समझ न सका और उसने प्रभु के आगे हाथ जोड़कर सिर झुका दिया.
भगवान मुस्कुराए और उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोले, “वत्स! जब रात्रि पहर तुम निद्रा में लीन थे, तब तुम्हारे करवट इत्यादि लेने से इस पेड़ पर जमी हुईं ओस की बूँदें और बेलपत्र हम पर गिरते रहे. उन ओस की बूंदों से हमारा अभिषेक हो गया और बेलपत्रों से हमारी पूजा हो गई. हम तुम्हारी इस निश्छल पूजा से अत्यंत प्रसन्न हैं. अब संकोच न करो, वत्स! वर माँगों.”
महादेव प्रभु की बात सुनकर वह व्यक्ति फूट फूट कर रो पड़ा. रोते रोते उसने हाथ जोड़कर कहा, “हे प्रभु! जिस मूढ्मति को आपने अपनी शरण में ले लिया हो, उसे भला और किसी वर की क्या आवश्यकता? आपके दर्शनमात्र से मैं धन्य हो गया.” उसकी भक्ति से महादेव प्रभु अत्यंत प्रसन्न हुए. उन्होंने उसे धन्य-धान्य, सुख-संपत्ति, स्त्री-पुत्र इत्यादि का वरदान दिया और अंतर्ध्यान हो गए.
तो देखा आपने दोस्तों, ऐसे है हमारे प्रभु भोलेनाथ जो अनजाने में गिरे ओस की बूंदों के अभिषेक और बेलपत्रों की पूजा से प्रसन्न हो जाते हैं और अपने भक्तों की समस्त इच्छाएँ पूरी करते हैं.
महादेव प्रभु हम सबको अपनी शरण में ले. हर हर महादेव!