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क्यों होते हैं अच्छे पुरुष?

क्यों होते हैं अच्छे पुरुष?

अच्छे पुरुष......
पुरुष प्रधान समाज
पुरुषों की ही बात करता है
पुरुषों के हिसाब से चलता
अच्छे पुरुष की परिभाषा गढ़ता है

समाज और परिवार की परिभाषाएँ
यह कभी भी पूरा सच नही होती है
अपना वर्चस्व क़ायम रखने को
सारी उम्र ज़िंदगी ज़िंदगी को ढोती है

तुम्हारे लिए स्त्री पूज्या होती या
फिर उसे मात्र भोग्या ही मानते हो
करते अपने झूठे अहम दंभ का नित
प्रदर्शन या फिर सन्यासी बन जाते हो
 

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समाज और परिवार को जो छोड़े
सबकी दृष्टि में वो महान पुरुष सही
किंतु स्त्री को समान समर्थ माने वो
होता कदापि एक अच्छा पुरुष नही

सारी उम्र बिना थके तुम इस
झूठे पुरुषत्व का बोझ ढोते रहते हो
मन मार कर जीते हो और
चुपचाप आँसुओं को पीते रहते हो

हक़ीक़त के आगे रोज़ रोज़
टूटते सपनों के कड़वे दर्द पी जाते हो
रोटी कपड़े के जुगाड़ से जुड़े हैं
वो रिश्ते जिनको तुम अपना बताते हो

भावनायें व्यक्त करने से बचते हो
तुम प्रेम तो करते हो लेकिन डरते हो
कायर होकर भी दंभ दिखाते हो
तुम एक अच्छे पुरुष हो यह जताते हो

रोना चाहकर भी रो नही सकते हो
रोते कमज़ोर हैं तुम ख़ुद को बताते हो
भीतर असहाय बाहर अभिमानी बनते
तुम एक अच्छे पुरुष हो ये दिखाते हो

ये कैसे अच्छे पुरुष हो एकबार ख़ुद
से नज़रें मिलाकर क्या पूछ सकते हो
सृष्टि में आये हो एक पूरक बनकर
सारे प्रयत्न मालिक बनने के करते हो

भावनाओं को बाँटना तुम्हें नही आता है
ज़िंदगी को सहेजना सिखाया नही जाता है
ज़िंदगी किसी से भेदभाव नही करती है
बिना कष्ट ये किसी के संग नही चलती है

अच्छे पुरुष बने रहने के लिए ख़ामोश रहते
उम्र भर घुटते रहते अधूरेपन का दर्द सहते हैं
अपने सारे दर्द का प्रतिशोध स्त्री से लेते हैं
ऐसे अच्छे पुरुष मुझे क़तई अच्छे नही लगते हैं ....!

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