श्रमिक या मजदूर ..क्या कभी हम इनके विषय में सोचते भी है....ये पुलों का जाल , बड़े बड़े हाइवे , ओवरब्रिज, गगनचुम्बी अट्टालिकाएं, अत्याधुनिक अस्पताल, एयरपोर्ट,रेलवे स्टेशन, विश्व विद्यालय, ये पथ, वो पथ सब इनके परिश्रम के साक्षात प्रमाण हैं ।
ये शायद ही किसी ने सोचा हो कि जो वस्त्र पहन कर हम इतराते रहते है ....उसके एक एक धागे में इन्हीं श्रमिकों का श्रम लगा है। जिन आलीशान बंगलों फ़्लैट्स और घरों में हम रहते हैं उनमें जिनका श्रम लगा है वो भी ये ही हैं।असल में हमारे विलासितापूर्ण जीवन के लिए हम सब जिन श्रमिकों के श्रम पर निर्भर हैं लगभग सभी आवश्यक उत्पाद उनके श्रम का ही परिणाम है।ये विडम्बना है कि अवसरों की कमी, कुछ ज्यादा कमाने की चाह, कुछ महानगरों की चकाचौंध और होड़ ने इनका सुकून छीन लिया है।
आज के इस कठिन वक़्त में एक प्रश्न मन में उठता है कि जिस मालिक को, जिस राज्य को ये श्रमिक अपना बहुमूल्य श्रम दे रहे थे क्या वह कुछ समय तक उन्हे दो वक़्त का भोजन भी नहीं दे सकता ... जबकि एक ग़रीब भी अपने सीमित संसाधनों को ज़रूरतमंद के साथ बाँट रहा है ..?
Advertisement
कितने लोग इस असहाय स्थिति से बेहतर घर पहुँचने को मानकर पैदल ही निकल पड़े और दुर्घटनाओं एवं बीमारी में अपने प्राणों को गँवा बैठे, कितना दुखद और कितनी बड़ी त्रासदी है । मन से एक आह सी निकलती है कि कैसे करवाओगे काम अब..जब कामगार घर की ओर वापस चल पड़े हैं, अब इन कामगारों को वापस न मुड़ना पड़े ...और इन के श्रम के लिए तुम्हारी फैक्ट्रियां तरस जायें !
ये सब परिश्रम करने के आदी है कुछ न कुछ तो कर ही लेंगे लेकिन तुम्हारे धंधे का क्या होगा .......? निश्चित ही मंदा हो जायेगा...इन श्रमिकों का कष्ट और इनकी आहें बेकार नहीं जाएँगी ...! अभी जैसा सुनने में आ रहा है कि कुछ राज्यों ने अपने और बाहरी कामगारों में बिना भेदभाव के सहायता दी है।अपने नागरिकों को लाखों की संख्या में वापस लाये है और उनके जीवनयापन के लिए व्यवस्थाएँ भी की जा रही हैं।
प्रधानमंत्री जी ने जिस कार्य योजना का ज़िक्र किया है यदि सभी राज्यों ने पूर्ण सहयोग दिया तथा ज़मीनी स्तर पर कार्यान्वित हो सकी और उसका फ़िफ़्टी परसेंट भी अगर सफल हो गया तो इन्हें वापस नहीं जाना पड़ेगा। दिल्ली, मुंबई जैसे बड़े शहरों ने इनकी जो बेक़द्री की है उसका परिणाम तो उन्हें झेलना ही पड़ेगा । बड़े शहरों में जैसे-तैसे गुजारा करने वालो को जब घर में ही काम मिल जायेगा तो वो भी सुकून से जी सकेंगे , अपने घर परिवार का सुख उठा सकेंगे।
प्रधानमंत्री जी का सम्बोधन सुनकर एक सपना खुली आंखो से देखने का जी चाह रहा है कि हर गाँव में कोई न कोई विशिष्ट उत्पाद तैयार हो रहा है,धीरे-धीरे ही सही कुटीर उद्योग वापस लौट आयें और लघु एवं मध्यम उद्योगों के स्थानीय उत्पाद विश्व भर में छा जायें । श्रमिको के जीवन स्तर में सुधार हो एवं शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाएँ उनकी पहुँच में आ सकें।
ये बेशक संभव है और ये अवश्य हो सकता है लेकिन सरकार का यह आर्थिक पैकेज उन विकासदूतों तक पहुँच सके जिन्हें इसकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत है और जो हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं न कि पुनः उन्ही पूँजीपतियों की झोली में जा गिरे। फ़िलहाल तो यही उम्मीद है कि इस आपदा को अवसर में बदल सकें तो ये भारत को एक आत्मनिर्भर राष्ट्र बनाने की दिशा में बड़ा सशक्त क़दम होगा। देश के किसानों श्रमिकों का जीवन स्तर भी अच्छा हो जाये, भारत के लिए इससे सुखद कुछ नहीं हो सकता।